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पर्युषण महापर्व – दूसरा दिन

पर्युषण महापर्व   दूसरा दिन

पर्वाणि सन्ति प्रोक्तानि, बहूनि श्री जिनागमे,
पर्युषणा समं नान्यत्, कर्मणां मर्मभेदकृत्|
जैनशासन में छः अट्ठाईयॉं बताई गई हैं| कार्तिक-फाल्गुन-आषाढ़ की तीन चौमासी अट्ठाई, चैत्र-आश्विन मास की नवपद की शाश्वती ओली की दो अट्ठाई और पर्युषण पर्व की एक अट्ठाई| प्रायः पर्युषण के समय पर सूर्य-सिंह राशि का अपने घरमें-स्वग्रही होता है| पर्युषण के शुभारंभ में मनका कारक चंद्र भी प्रायः कर्कराशी में यानी कि अपने घरमें होता है| इस तरह पर्युषण पर्व के दिन हमें कह रहे हैं कि ‘‘इन दिनोमें सूर्य-चंद्र की तरह आप, आपकी आत्मा और आपका मन भी स्वगृही-अपने स्वरूपमें होना चाहिए|’’

पर्युषण के दिनोमें सामुदायिक आराधनाएँ होती हैं| इस समुदायमें शामिल हुए सभी आराधक सामुदायिक आराधना का लाभ प्राप्त करते हैं| इसलिए स्वयं एक ही अट्ठम करने पर भी समुदाय में किये गये तमाम अठ्ठम का हिस्सेदार बनता है| इस तरह विशिष्ट-कर्मनिर्जरा और पुण्य का लाभ होता है| इसलिए ही तो चातुर्मास की शुरुआत से ही पर्युषण पर्व की आराधना की तैयारी शुरु होने लगती है| डेढ़ मास का धर, मासका धर और पखवाडा का धर भी हमें इस क्षमापर्व की आराधना के लिए तैयारी करने हेतु सावधान करते हैं| पर्युषण का प्रथम दिन अट्ठाईधर का है| आज दूसरा दिन है| प्रथम सात दिन में मन को तैयार करके संवत्सरी पर्वकी-वार्षिक पर्व की हमें आराधना करनी है| पर्युषण का अर्थ ही है कि चारो ओरसे निकट आकर-इकट्ठा होकर इस वार्षिक पर्व की आराधना करना|

जो उत्सव मनाने का तरिका मात्र नाटक दिखानेरूप हो, फिजुल शोरगुल मचानेरूप हो और स्वयं की असहिष्णु वृत्ति के कारण अन्य को सतानेरूप हो, वह उत्सव को मनाने से तो शरमाने जैसा है| पर्युषण पर्व मनाने का तरीका ऐसा नहीं बल्कि क्षमादि भावोकी खरी कमाई करने रूप है|

शुभअध्यवसाय से संज्ञा को तोड़ने, कषायो को छोडने, मोहदशा के कवच को भेदने स्वशक्तिसे और उत्कृष्ट भक्तिसे यदि इस पर्व की आराधना करेंगे तो यह पर्व फेक्टरी बन जाएगा| हम हैं रोमटीरीयल (कच्चा माल)| पर्युषण पर्व की फेक्टरी में धर्माराधना की प्रक्रिया होगी और बाहर आयेगा फीनीश्ड (तैयार) माल यानी कि सिद्ध अवस्था| सिद्ध अवस्था फीनीश्ड प्रोडक्ट है, तो हम रो मटीरीयल हैं|

पर्युषण महापर्व   दूसरा दिन
जैसे शत्रुंजय तीर्थाधिराजमें किया हुआ छोटा भी पाप बहुत बड़ा गिना जाता है और उसका दंड भी बड़ा होता है| उसी तरह पर्वदिन भी पवित्र हैं| समयतीर्थ हैं| उन दिनोमें किये हुए सामान्य क्रोधादि या रात्रिभोजनादि छोटे पाप भी बहुत बड़े गिने जाते हैं| पर्व में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है| अन्यक्षेत्र में किये हुए पाप तीर्थ क्षेत्रमें धुल सकते हैं| किन्तु तीर्थक्षेत्र में किये हुए पाप अन्य कहीं भी धुल नहीं सकते| ठीक उसी तरह अन्य तिथिमें किये हुए पाप पर्वतिथि की आराधना से धुल सकते हैं, मिटा सकते हैं| किन्तु पर्वतिथि में किये हुए पाप अन्य कोई तिथिमें मिटा नहीं सकते|

उस तरह ही अन्यक्षेत्र में की हुई आराधना से तीर्थक्षेत्रमें की हुई आराधना बहुत अधिक फल की प्राप्ति कराने में समर्थ बनती है| वैसे ही अन्य तिथि के दिन आराधना के मार्ग पर चलनेवाले हम पर्वतिथि के दिनमें आराधना के मार्ग पर दौड़ते हैं, उसमें भी चौमासी चौदस आदि पर्वतिथि पर की हुई आराधना लंबी कूद जैसी होती है, तो पर्वाधिराज में की हुई आराधनाएँ तो आराधना के गगनमें उड़ान समान ही बन जाती है| चलो, अब हम मात्र दौड़वीर नही, उड्डयनवीर बनें|

एक भाईने एक वृद्ध पुरुष से पूछा, ‘‘यहॉंसे रेल्वे स्टेशन पहुँचने में कितना समय लगेगा|’’ वृद्धपुरुषने जवाब नहीं दिया| तीन-चार बार पूछने पर भी वृद्ध पुरुष मौन ही रहे| आखिर उकताकर ‘जवाब नहीं मिलेगा और फिजुल में समय व्यर्थ होगा’ ऐसा सोचकर वह भाई जल्दी से स्टेशन की ओर चलने लगा| तब वृद्धपुरुषने उन्हें रोकते हुए पास जाकर कहा- ‘‘आप दश मिनिटमें स्टेशन पहुँच जायेंगे|’’

उस भाईने मुंह लटकाकर पूछा, ‘‘मेरे तीन बार पूछने पर भी आपने कोई प्रतिभाव नहीं दिया और अब जब मैं जल्दी से चलने लगा तब आप सामने से प्रत्युत्तर देने आये| आपने ऐसा क्युं किया?’’ वृद्धपुरुषने कहा, ‘‘भाई ! आप व्याकुल मत होईए| आपने मुझे पूछा था कि मैं स्टेशन कितने समयमें पहुँच सकुंगा ? किन्तु आपकी चलने की गति कितनी है, वह जाने बिना मैं किस तरह कह सकता हूँ कि आप कितनी देरमें पहुँच सकोगे| अब मैंने आपकी चलने की गति देखी ! उसके आधार पर मैंने अँदाज़ लगाकर बताया |’’

बात यह है कि मोक्ष तक पहुँचना है तो कब पहुँचेंगे ? अभी कितने भव व्यतीत हो जायेंगे ? इस प्रश्न का जवाब क्या हो सकता है ? आप सामान्य से कितने उत्साहसे और विशेषतः पर्युषण जैसे पर्वोमें कितने उमंगसे विराधनाओं से लौटकर आराधना के मार्ग पर कदम बढ़ाते हैं उसके आधार पर ही अंदाज लगा सकते हैं| आप यदि उडान भरेंगे, तो जल्दी पहुंचेंगे, यदि कूद लगायेंगे तो थोड़ी देर से| दौडेंगे तो और देरसे| शहेनशाह की तरह टहलते हुए जायेंगे तो दिल्ही बहुत दूर है, परन्तु उस कुएँ के मेंढक से उलटा चलोगे तो आपके मार्ग पर दिल्ही नामका स्टेशन ही आनेवाला नहीं है|

पर्युषण महापर्व   दूसरा दिन
एक कुएँमें एक मेंढ़क था| कूआ ३० फूट गहरा था| कूएँ के तलमें रहा हुआ मेंढ़क हररोज़ दिनमें तीन फूट उपर चढ़ता था और रात्रि की निंदमें दो फूट नीचे उतर जाता था, तो वह कितने दिन में बाहर निकलेगा ? जवाब है अट्ठाईस दिनमें !

किन्तु ज्यादातर परिस्थिति अलग है| पर्वाधिराज जैसे पर्व दिनोमें आराधना करके दो फूट उँचाई पर आकर उसके बाद दुगुने जोर से अभक्ष्यभोजन, होटेलभोजन, रात्रि भोजन, अनीति इत्यादि में जूटकर तीन फूट नहीं, तीस फूट नीचे उतर जानेवाला दुर्भागी उसमें से बहार कब निकलेगा? इस तरह दो कदम आगे बढ़कर तीन कदम पीछे हटनेवाले के मार्ग में मोक्ष नामका दिल्ही दूर नहीं किन्तु दिल्ही नामका स्टेशन ही नहीं है|

उसी तरह पर्युषण में भी उपवासादि तप करके हम दो फूट आगे बढ़ते हैं| किन्तु बादमें क्रोध करके या तो टी.वी. के सामने बैठकर, प्रवचन सुनने के स्थान पर विडियोगेम खेलकर तीन फूट पीछे हटते हैं| अब आप ही कहो, दिल्ही कब पहुँचेंगे ?

इसलिए
१) पर्वाधिराज के दिनोमें ऐसे पाप न हो जाए उसका ध्यान रखना चाहिए|
२) बादमें पापप्रवृत्तिओमें दुगुने जोरसे जूटना न हो जाए उसकी जागृति रखना आवश्यक है|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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2 Comments

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  1. harshad shah
    जन॰ 21, 2019 #

    paryushan pravachan if given in gujarati than it will be more useful to gujarati reading people.

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