एक उत्पद्यते जन्तुरेक एव विपद्यते
यह घर मेरा नहीं है|
संसार की कोई भी जड़ चेतन वस्तु मेरी नहीं है|
क्या है तेरा ?
तूं क्या लेकर आया था ?
और क्या लेकर यहां से जायेगा ?
उसका गहरा विचार करने से संसार के पदार्थों में
मोह-आसक्ति कम हो जायगी|
जीव अकेला आया है और
मर कर अकेला ही जायेगा|
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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