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मुक्त मन से दो

मुक्त मन से दो

परोपकाराय सतां विभूतयः
जो तुम्हारे पास है उसे दूसरों को देने में तु स्वतंत्र हो अतः जब देने का अवसर हो तो मुक्त मन से देना सीखो| यह चिन्तन मेरे मन में सदा रहे कि मेरे पास जो कुछ है वह मैं दूसरों को पहुँचाऊँ…..प्रकृति ने हमें देने के लिए समय, समझ, सामग्री और सामर्थ्य दिया है उसे दूसरो के हित में लगा देना चाहिए|

इसके लिए हम इतने पुण्यशाली बनें कि जो मेरे पास है वह मैं दूसरों को उदारता से दूँ| सृष्टि का एक नियम है जो दिया जाता है वही लौटता है जो हम दे सकते हैं उसे ईानदारी से देते रहना चाहिए|

जीवन में जिसने बॉंटा उसी ने पाया और जिसने संभाला उसी ने गँवाया अतः जब देना ही है तो शत्रु हो या मित्र सभी को समान रूप से दो| कितना भी दे दोगे तो भी खजाने में कुछ कमी नहीं आएगी|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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1 Comment

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  1. Dilip Parekh
    जुल॰ 31, 2015 #

    Dharm kiye dhan na ghate…

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