श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन
राग : केदारो – ‘‘एम धन्नो धणने परचावे रे…’’ ए देशी
सुविधि जिनेसर पाय नमीने, शुभ करणी एम कीजे रे;
अति घणो ऊलट अंग धरीने, प्रह ऊठी पूजीजे रे.
श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन
राग : केदारो – ‘‘एम धन्नो धणने परचावे रे…’’ ए देशी
सुविधि जिनेसर पाय नमीने, शुभ करणी एम कीजे रे;
अति घणो ऊलट अंग धरीने, प्रह ऊठी पूजीजे रे.
आज सुहागन नारी अवधू ! आज सुहागन नारी,
मेरे नाथ आप सुध लीनी कीनी निज अंगचारी.
श्री अभिनंदन जिन स्तवन
राग : धन्यासिरि-सिंधुओ – “आज निहेजो रे दीसे नाईलो रे…’’ ए देशी
अभिनंदन जिन! दरिसण तरसीए,
दरिसण दुरलभ देव;
मत मत भेदे रे जो जई पूछीए,
सहु थापे अहमेव.
श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन
राग : केदारो तथा गोडी – ‘‘कुमारी रोवे, आक्रंद करे, मु कोई मुकावे…’’ ए देशी
देखण दे रे, सखी!
मुने देखण दे, चंद्रप्रभ मुखचंद,
उपशमरसनो कंद, सखी.
गत कलि-मल-दु:खदंद..
मेरे घट ग्यान भानु भयो भोर
मेरे घट ग्यान भानु भयो
भोर चेतन चकवा चेतना चकवी,
भागो विरह को सोर…
मेरे घट ग्यान भानु भयो भोर.
क्या सोवे उठ जाग बाउ रे,
अंजलि जल ज्युं आयु घटत है
देत पहोरिया घरिय घाउ रे…
क्या सोवे उठ जाग बाउ रे
श्री ऋषभदेव जिन स्तवन
राग : मारु – ‘‘करम परीक्षा करण कुमार चाल्यो…’’ ए देशी
ऋषभ जिनेसर प्रीतम माहरो रे,
ओर न चाहुं रे कंत;
रीझ्यो साहिब संग न परिहरे रे,
भांगे सादि अनंत.
श्री महावीर जिन स्तवन
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दुलह नारी तुं बडी बावरी
पिया जागे तुं सोवे
पिया चतुर हम निपट अग्यानी
न जानु क्या होवे?
न जानु क्या होवे?