1 0 Tag Archives: जैन सूत्र
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अनिदानता

अनिदानता

सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था

भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है

कार्य की शुद्धि के लिए निःस्वार्थता अत्यन्त आवश्यक है| स्वार्थ या फल की कामना ही कार्य को कलुषित करती है| फल तो मिलेगा ही; परन्तु हमें फल की आशा रख कर कार्य नहीं करना चाहिये| Continue reading “अनिदानता” »

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मुक्त कौन है ?

मुक्त कौन है ?

विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो

जो जन (कामनाओं को) पार कर गये हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं

बन्धन ! कितना बुरा शब्द है यह ? कौन पसन्द करता है इसे ? कौन फँसना चाहता है इसमें ? कोई नहीं| Continue reading “मुक्त कौन है ?” »

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कामों की कामना

कामों की कामना

कामी कामे न कामए, लद्धे वा वि अलद्ध कण्हुइ

साधक कामी बनकर कामभोगों की कामना न करे| उपलब्ध को भी अनुपलब्ध समझे| प्राप्त भोगों पर भी उपेक्षा करे|

काम-भोगों का त्याग कर के जो प्रवृजित हो जाते हैं – दीक्षित हो जाते हैं, उन्हें फिर से कामुक बनकर कामभोगों की कामना कभी नहीं करनी चाहिये और न उनकी प्राप्ति के लिए कोई प्रयत्न ही करना चाहिये| Continue reading “कामों की कामना” »

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चार पुत्र

चार पुत्र

चत्तारि सुता-अतिजाते,
अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले

पुत्र चार प्रकार के होते हैं – अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलांगार

कुछ पुत्र ऐसे होते हैं, जो गुणों में अपने पिताजी से भी आगे बढ़ जाते हैं, उन्हें ‘अतिजात सुत’ कहा जाता है| Continue reading “चार पुत्र” »

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न बद्ध, न मुक्त

न बद्ध, न मुक्त

कुसले पुण नो बद्धे, नो मुत्ते

कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त

कुशल पुरुष का वर्णन यहॉं आलंकारिक भाषा में किया गया है| जो बद्ध है, वह मुक्त नहीं हो सकता और जो मुक्त है, वह बद्ध नहीं हो सकता | व्यक्ति या तो बद्ध होगा या फिर मुक्त| वह दोनों एक साथ नहीं हो सकता| Continue reading “न बद्ध, न मुक्त” »

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हँसते हुए न बोलें

हँसते हुए न बोलें

न हासमाणो वि गिरं वएज्जा

हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये

हँसते हुए बोलना अथवा बोलते हुए हँसना एक दुर्गुण है – कुटेव है – मूर्खता के अनेक लक्षणों में से एक लक्षण है| Continue reading “हँसते हुए न बोलें” »

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खाने-पीने की मात्रा

खाने पीने की मात्रा

माइ असणपाणस्स

खाने-पीने की मात्रा के ज्ञाता बनो

जो मनुष्य स्वाद का गुलाम बन जाता है, उसे भोजन की मात्रा का ज्ञान नहीं रहता| वह अपने पेट पर दया नहीं करता और ठूँस-ठूँस कर खाता है| प्रकृति ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल क्षमा नहीं करती| उसमें अजीर्ण पैदा कर देती है, जो समस्त बीमारियों का बीज है| Continue reading “खाने-पीने की मात्रा” »

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मोहग्रस्तता

मोहग्रस्तता

इत्थ मोहे पुणो पुणो सा,
नो हव्वाए नो पाराए

मोहग्रस्त व्यक्ति न इस पार रहते हैं, न उस पार

संसार क्षणभंगुर है| इसकी प्रत्येक वस्तु अस्थायी है- अस्थिर है; इसलिए विषयवासना की सामग्री भी ऐसी ही है; जिसके प्रति मुग्ध हो कर प्राणी इधर-उधर भटकते रहते हैं| Continue reading “मोहग्रस्तता” »

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