1 0 Tag Archives: जैन सिद्धांत
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जीवन को थोड़े रंग दो

जीवन को थोड़े रंग दो
जीवन को वैसा ही मत छोड़ो जैसा तुने पाया था| जीवन को कुछ सुंदर करो| उठाओ तूलिका, जीवन को थोड़े रंग दो| उठाओ वीणा, जीवन को थोड़े स्वर दो| पैरों में बांधों घूंघर, जीवन को थोड़ा नृत्य दो| प्रे दो, प्रीति दो! तोड़ो उदासी| जीवन को थोड़ा उत्सव से भरो| Continue reading “जीवन को थोड़े रंग दो” »

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पानी के त्रस जीवों की रक्षा करो

पानी के त्रस जीवों की रक्षा करो
निम्नलिखित विशेष सावधानियॉं बरतें :-

1. हर कार्य में पानी का छानकर ही उपयोग करें|

2. पानी छानने के बाद गलने को वैसे ही न सूखाएँ, लेकिन छाने हुये पानी को खूब धीरे से गलने पर डाले तथा उस पानी को उसके मूल स्थान पर बहा दें| फिर गलने को सूखा दें|

3. घर से निकलते समय छाने हुए पानी की वॉटरबॅग साथ लें, जिससे कहीं भी बिना छाना पानी पीना न पड़े| Continue reading “पानी के त्रस जीवों की रक्षा करो” »

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प्रार्थना में मॉंग न हो

प्रार्थना में मॉंग न हो
प्रार्थना का मार्ग समर्पण का मार्ग है| प्रार्थना याचना नहीं अर्पणा है| जिससे हृदय के द्वार स्वयमेव खुलते हैं| सूरज का उदय हो और फूल न खिलें तो समझना कि वह फूल नहीं पत्थर है… परमात्मा की प्रार्थना हो और हमारा हृदय न खिले तो जानना चाहिए वह हृदय नहीं पत्थर है| प्रार्थना में जब मॉंग आती है तो भक्त उपासक न रहकर याचक बन जाता है| प्रार्थना एक निष्काम कर्म है| जब भक्त तन्मय होकर प्रार्थना में लग जाता है तो उसकी सारी इच्छाएं स्वतः समाप्त हो जाती है| एक भक्त की सच्ची प्रार्थना इस प्रकार होनी चाहिए…|

करो रक्षा विपत्ति से न ऐसी प्रार्थना मेरी|
विपत्ति से भय नहीं खाऊँ प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥
मिले दुःख ताप से शान्ति न ऐसी प्रार्थना मेरी|
सभी दुःखों पर विजय पाऊँ, प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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सम्बन्धों को संभाले

सम्बन्धों को संभाले

पोष्यपोषकः
चाहे ज़िन्दगी कितनी छोटी क्यों न हो परन्तु हम अकेले नहीं जी सकते| हम सम्बन्धों के धागों को बुन लेते हैं| Continue reading “सम्बन्धों को संभाले” »

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चित्रक और संभूति चंडाल बने

चित्रक और संभूति चंडाल बने
जंगल से एक मुनि गुज़र रहे थे| रास्ता भूल जाने के कारण दोपहर के समय बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े| गाय चराने के लिए आये हुये चार ग्वालों ने इस दृश्य को दूर से देखा| वे नज़दीक आये| मुनि बेहोश थे| होठ सूख गए थे| चेहरा कुम्हला गया था| तृषा का अनुमान कर उन्होंने गाय को दुहकर मुँह में दूध डाला| इससे मुनि होश में आये| कुछ समय के बाद मुनिश्री ने चारों को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि संसाररूपी जंगल में उनकी आत्मा भटक रही हैं| उस दुःख से पार उतरने के लिये एकमात्र साधन है चारित्र धर्म| इस प्रकार का बोध दिया| चारों ने प्रतिबोध पाकर चारित्र ग्रहण किया| उनमें से दो आत्माएं तो उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चली गई| Continue reading “चित्रक और संभूति चंडाल बने” »

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प्रायश्‍चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?

प्रायश्‍चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?
आलोचना का प्रायश्चित देने वाले गुरु पांच व्यवहारों के जानकार होते हैं|

आगम व्यवहारी :- अर्थात् केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, १४, १०, ९ पूर्वी हो, उनके पास प्रायश्‍चित लेना चाहिए| Continue reading “प्रायश्‍चित देने वाले गुरु कौन होते हैं?” »

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साहस – जीवन का मूल गुण

साहस   जीवन का मूल गुण
जीवन एक युद्ध है, और उसमें विजयी बनने के लिए साहस एक अमोघ अस्त्र है| दुर्बल और भीरु मानव कभी भी प्रगति के द्वार नहीं छू सकता| जीवन की उन्नति, प्रगति और उच्चतम विकास के लिए साहस मूल आधार है| Continue reading “साहस – जीवन का मूल गुण” »

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जीवन क्षणभंगुर है

जीवन क्षणभंगुर है

असंखयं जीवियं मा पमायए
इस जगत में सब क्षणभंगुर है; अगर प्यार खोजना हो तो शाश्‍वत में खोजो| यहां कुछ अपना नहीं है| यहां भरमो मत, अपने को भरमाओ मत, भरमाओ मत ! यहां सब छूट जानेवाला है| यहां मृत्यु ही मृत्यु फैली है| यह मरघट है| यहां बसने के इरादे मत करो| यहां कोई कभी बसा नहीं| Continue reading “जीवन क्षणभंगुर है” »

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बुरी संगत

बुरी संगत
पवन के पिता जी बड़े परेशान थे| कुछ दिनों से पवन बुरी संगत में पड़ गया था| अंत में उन्हें एक युक्ति सूझी| वे बाजार से कुछ आम खरीद कर लाए| सब आम तो पके हुए और बढ़िया थे, पर एक आम काफी सड़ा हुआ था| Continue reading “बुरी संगत” »

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गुरुदेवश्री का आश्‍वासन

गुरुदेवश्री का आश्‍वासन
अरे पुण्यशाली मानव! तू वास्तव में धन्यवाद का पात्र है| पाप हो जाना, कोई आश्‍चर्य नहीं है| मोहनीय कर्म के उदय से किसने कौन-से पाप नहीं किये? क्या मोह ने तीर्थंकर की आत्मा को भी छोड़ा है? क्या उन्होंने अपने पूर्व जीवन में भयंकर पाप नहीं किये? क्या उन पापों से उन्हें सातवी नरक तक नहीं जाना पड़ा? परंतु जीवन की काली-श्याम किताब को धोकर तुझे उज्जवल बनने का मनोरथ हुआ हैं| अतः तू धन्यवाद का पात्र है| तू तो काली किताब का एक-एक पन्ना खोलकर कालिमा को धो रहा है| अतः तू विशेष रूप से धन्यवाद का पात्र है| बालक जैसी सरलता से एक एक पाप निष्कपट भाव से प्रगट कर दे| अरे! आत्मा पर से झिड़क दे इन पापों को| Continue reading “गुरुदेवश्री का आश्‍वासन” »

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