अत्थि सत्थं परेण परं|
नत्थि असत्थं परेण परं||
नत्थि असत्थं परेण परं||
शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है
शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है
न अपनी आशातना करो, न दूसरों की
सूक्ष्म शल्य बड़ी कठिनाई से निकाला जा सकता है
अधिक समय तक एवं अमर्याद न बोलें
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर
अपने से बड़े गुरुजन (रत्नाधिक) जब बोलते हों – व्याख्यान करते हों, तब उनके बीच में नहीं बोलना चाहिये
माया मित्रता को नष्ट करती है
जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है
लोभ से कलुषित जीव अदत्तादान (चोरी) करता है