सित्थेण दोणपागं, कविं च एक्काए गाहाए
एक कण से द्रोण-भर पाक की और एक गाथा से कवि की परीक्षा हो जाती है
एक कण से द्रोण-भर पाक की और एक गाथा से कवि की परीक्षा हो जाती है
किसी के साथ वैर-विरोध मत करो
शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है
न अपनी आशातना करो, न दूसरों की
सूक्ष्म शल्य बड़ी कठिनाई से निकाला जा सकता है
अधिक समय तक एवं अमर्याद न बोलें
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर
अपने से बड़े गुरुजन (रत्नाधिक) जब बोलते हों – व्याख्यान करते हों, तब उनके बीच में नहीं बोलना चाहिये
माया मित्रता को नष्ट करती है