1 0 Tag Archives: जैन आगम
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कर्म का मूल हिंसा

कर्म का मूल हिंसा

कम्ममूलं च जं छणं

जो क्षण है, वह कर्म का मूल है

‘क्षण’ शब्द ‘क्षणवधे’ इस तनादि गण की उभयपदी सकर्मक धातु से बना है, जिसका अर्थ है – हिंसा| वैसे इस शब्द के और भी अनेक अर्थ हैं – निमेषक्रिया का चतुर्थ भाग, उत्सव, अवसर आदि; परन्तु इस सूक्ति में उस का मूल अर्थ ‘वध’ या ‘हिंसा’ ही ठीक लगता है| Continue reading “कर्म का मूल हिंसा” »

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अज्ञ कौन है ?

अज्ञ कौन है ?

बालो पापेहिं मिज्जति

अज्ञ पापों पर घमण्ड करता है

कार्य दो तरह के होते हैं – भले और बुरे| भले कार्य पुण्य और बुरे कार्य पाप कहलाते हैं| Continue reading “अज्ञ कौन है ?” »

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प्रमाद छोड़िये

प्रमाद छोड़िये

अलं कुसलस्स पमाएणं

कुशल व्यक्ति को प्रमाद नहीं करना चाहिये

मूर्ख व्यक्ति तो प्रमाद करते ही हैं; परन्तु जो व्यक्ति मूर्ख नहीं हैं-कुशल हैं – बुद्धि के स्वामी हैं – समझदार हैं, उनसे तो यह आशा नहीं की जा सकती कि वे प्रमादी बनकर अपना जीवन व्यर्थ खो दें| Continue reading “प्रमाद छोड़िये” »

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पहले ज्ञान, फिर दया

पहले ज्ञान, फिर दया

पढमं नाणं तओ दया

पहले ज्ञान, फिर दया

दया धर्म की माता है तो ज्ञान धर्म का पिता है| ज्ञान और दया के समन्वय से ही धर्म की उत्पत्ति हो सकती है, अन्यथा नहीं| Continue reading “पहले ज्ञान, फिर दया” »

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श्रुतशील-तप

श्रुतशील तप

कसाया अग्गिणो वुत्ता,
सुयसीलतवो जलं

कषाय अग्नि है तो श्रुत, शील और तप को जल कहा गया है

क्रोध, मान, माया और लोभ – ये चार कषाय हैं| अग्नि की तरह ये आत्मा को जलाते रहते हैं – अशान्त और क्षुब्ध बनाते रहते हैं| इनसे कैसे बचा जाये ? इसका उपाय इस सूक्ति में बताया गया है| Continue reading “श्रुतशील-तप” »

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दुर्लभ श्रद्धा

दुर्लभ श्रद्धा

श्रद्धा परमदुल्लहा

श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है

धर्म पर श्रद्धा हो तो मनुष्य स्वार्थ का विचार किये बिना भी अपने कर्तव्य पर आरूढ़ हो सकता है| परन्तु यह श्रद्धा हो कैसे ? उसका आचार क्या हो ? Continue reading “दुर्लभ श्रद्धा” »

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एक ही गाथा से

एक ही गाथा से

सित्थेण दोणपागं, कविं च एक्काए गाहाए

एक कण से द्रोण-भर पाक की और एक गाथा से कवि की परीक्षा हो जाती है

वस्तु की परीक्षा उसके एक अंश को देखकर भी की जा सकती है| एक चावल को दबा कर यह जाना जा सकता है कि हँडिया भर चावल पके हैं या नहीं| इस जॉंच के लिए सब चावलों को दबाना आवश्यक नहीं है| Continue reading “एक ही गाथा से” »

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वैर-विरोध मत कीजिये

वैर विरोध मत कीजिये

न विरुज्झेज्ज केण वि

किसी के साथ वैर-विरोध मत करो

पूर्वजन्म में किये गये शुभाशुभ कर्मों के ही अनुसार इस जन्म में अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति प्राप्त होती है| भ्रम से लोग यह समझ बैठते हैं कि अमुक व्यक्ति हमारा विरोधी है – वैरी है और हमारे सारे कष्ट उसीके द्वारा पैदा किये हुए हैं, हमारी प्रतिकूल परिस्थिति का जन्मदाता भी वही है| परन्तु बात ऐसी नहीं है| Continue reading “वैर-विरोध मत कीजिये” »

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शस्त्र या अशस्त्र ?

शस्त्र या अशस्त्र ?

अत्थि सत्थं परेण परं|
नत्थि असत्थं परेण परं||

शस्त्र एक से एक बढ़कर हैं, परन्तु अशस्त्र (अहिंसा) एक से एक बढ़कर नहीं है

इस दुनिया में हिंसा के साधन अनेक हैं और वे एक से एक बढ़कर हैं| तलवार, भाला, तीर, बन्दूक, तोप, बम और परमाणुबम (हाइड्रोजन बम) क्रमशः भयंकर से भयंकर संहारक अस्त्र हैं| यदि राष्ट्रों की आँखों से स्वार्थान्धता की पट्टी न हटी; तो भविष्य में और भी भयंकर शस्त्रों के निर्माण की सम्भावना है| Continue reading “शस्त्र या अशस्त्र ?” »

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न अपनी आशातना करो न दूसरों की

न अपनी आशातना करो न दूसरों की

नो अत्ताणं आसाएज्जा, नो परं आसाएज्जा

न अपनी आशातना करो, न दूसरों की

जो लोग हीन-मनोवृत्ति के शिकार होते हैं – अपने को तुच्छतम समझते हैं, वे इस दुनिया में उन्नति नहीं कर सकते | उनमें अपना विकास करने का – प्रगतिपथ पर आगे बढ़ने का साहस तक नहीं हो सकता – जीवनभर वे अपने को अक्षम ही समझते रहते हैं और अक्षम ही बने रहते हैं| Continue reading “न अपनी आशातना करो न दूसरों की” »

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