1 0 Tag Archives: जैन आगम
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चार पुत्र

चार पुत्र

चत्तारि सुता-अतिजाते,
अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले

पुत्र चार प्रकार के होते हैं – अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलांगार

कुछ पुत्र ऐसे होते हैं, जो गुणों में अपने पिताजी से भी आगे बढ़ जाते हैं, उन्हें ‘अतिजात सुत’ कहा जाता है| Continue reading “चार पुत्र” »

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न बद्ध, न मुक्त

न बद्ध, न मुक्त

कुसले पुण नो बद्धे, नो मुत्ते

कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त

कुशल पुरुष का वर्णन यहॉं आलंकारिक भाषा में किया गया है| जो बद्ध है, वह मुक्त नहीं हो सकता और जो मुक्त है, वह बद्ध नहीं हो सकता | व्यक्ति या तो बद्ध होगा या फिर मुक्त| वह दोनों एक साथ नहीं हो सकता| Continue reading “न बद्ध, न मुक्त” »

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खाने-पीने की मात्रा

खाने पीने की मात्रा

माइ असणपाणस्स

खाने-पीने की मात्रा के ज्ञाता बनो

जो मनुष्य स्वाद का गुलाम बन जाता है, उसे भोजन की मात्रा का ज्ञान नहीं रहता| वह अपने पेट पर दया नहीं करता और ठूँस-ठूँस कर खाता है| प्रकृति ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल क्षमा नहीं करती| उसमें अजीर्ण पैदा कर देती है, जो समस्त बीमारियों का बीज है| Continue reading “खाने-पीने की मात्रा” »

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हँसते हुए न बोलें

हँसते हुए न बोलें

न हासमाणो वि गिरं वएज्जा

हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये

हँसते हुए बोलना अथवा बोलते हुए हँसना एक दुर्गुण है – कुटेव है – मूर्खता के अनेक लक्षणों में से एक लक्षण है| Continue reading “हँसते हुए न बोलें” »

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मोहग्रस्तता

मोहग्रस्तता

इत्थ मोहे पुणो पुणो सा,
नो हव्वाए नो पाराए

मोहग्रस्त व्यक्ति न इस पार रहते हैं, न उस पार

संसार क्षणभंगुर है| इसकी प्रत्येक वस्तु अस्थायी है- अस्थिर है; इसलिए विषयवासना की सामग्री भी ऐसी ही है; जिसके प्रति मुग्ध हो कर प्राणी इधर-उधर भटकते रहते हैं| Continue reading “मोहग्रस्तता” »

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उच्च नीच गोत्र

उच्च नीच गोत्र

से असइं उच्चागोए, असइं नीआगोए,
नो हीणे नो इहरित्ते

यह जीव अनेक बार उच्च गोत्रमें और अनेक बार नीच गोत्र में जन्म ले चुका है; परन्तु इससे न कोई हीन होता है, न महान|

उच्च गोत्र में पैदा होने से व्यक्ति अपने को महान समझ बैठता है और नीच गोत्र में पैदा होने से अपने को हीन या तुच्छ समझने लगता है; परन्तु ये दोनों ही बातें भ्रमपूर्ण हैं, क्यों कि व्यक्ति अनेक बार उच्च नीच गोत्रों में जन्म ले चुका है| Continue reading “उच्च नीच गोत्र” »

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मोक्ष और निर्वाण

मोक्ष और निर्वाण

अगुणिस्स नत्थि मोक्खो,
नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं

गुणोंके अभाव में मोक्ष नहीं होता और मोक्षके अभाव में निर्वाण नहीं होता

Continue reading “मोक्ष और निर्वाण” »

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बहुत न बोलें

बहुत न बोलें

बहुयं मा य आलवे

बहुत अधिक न बोले

कुछ लोग बहुत अधिक बोला करते हैं| वे दिन भर कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं| मौन रहना उन्हें नहीं सुहाता| बड़ी बुरी आदत है यह| Continue reading “बहुत न बोलें” »

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विषलिप्त कॉंटा

विषलिप्त कॉंटा

तम्हा उ वज्जए इत्थी,
विसलित्तं व कंटगं नच्चा

विषलिप्त कॉंटे की तरह जानकर ब्रह्मचारी स्त्री का त्याग करे

स्त्रियों के प्रति – ऐसा लगता है कि प्रकृति ने कुछ पक्षपात किया है| पुरुषों की अपेक्षा उनका स्वर स्वाभाविक रूप से अधिक मधुर होता है| कोयल का पंचम स्वर उनके कण्ठ में बिठा दिया गया है| Continue reading “विषलिप्त कॉंटा” »

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वृद्धावस्था

वृद्धावस्था

से ण हासाए, ण किड्डाए,
ण रतीए, ण विभूसाए

वृद्ध होने पर व्यक्ति न हास-परिहास के योग्य रहता है, न क्रीड़ा के, न रति के और न शृंगार के ही

जन्म लेने के बाद प्रत्येक व्यक्ति शिशु, बालक, किशोर और तरुण बनकर क्रमशः वृद्धावस्था को प्राप्त करता है| यदि कोई किशोर चाहे के मैं तरुण न बनूँ; तो यह उसके वश की बात नहीं है| किशोरावस्था के बाद तारुण्य अनिवार्य है| Continue reading “वृद्धावस्था” »

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