भाव : दान धर्म…ना बधाज मुख्य प्रकारनी समजण
चोत्रीश अतिशयवंत,
समवसणे बेसी हो जगगुरु;
उपदेशे अरिहंत,
दानतणा गुण हो पहेले सुखकरू.
भाव : दान धर्म…ना बधाज मुख्य प्रकारनी समजण
चोत्रीश अतिशयवंत,
समवसणे बेसी हो जगगुरु;
उपदेशे अरिहंत,
दानतणा गुण हो पहेले सुखकरू.
श्री पद्मप्रभु जिन स्तवन
राग : मनडुं किम हि न बाजे हो कुंथुजिन…
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राग : अरणीक मुनिवर चाल्या गोचरी
भाव : सुलसा महासतीना समकित-समता शील नी सुगंध
शील सुरंगीरे सुलसा महासती,
वर समकित गुण धारीजी;
राजगृही पूरे नाग रथिक तणी,
सुलसा नामे नारीजी.
श्री अनंतनाथ जिन स्तवन
राग : कल्याणअरज सुनो प्रभु अनंत जिणंदा
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राग : पहेले दिन बहु आदर आणी आशावरी
भाव : संसारना सुख भोग वच्चे चक्रवतू भरत महाराजानी वैराग्य साधना
मनमें ही वैरागी, भरतजी;
मनमें ही वैरागी;
सहस बत्रीश मुगुट बंध राजा,
सेवा करे वड भागी.
चोसठ सहस अंतेउरी जाके,
तोही न हुवा अनुरागी.
भरत मनमें ही वैरागी.
राग : माढ. मेरे गमका तराना
भाव : परनारी त्याग ने पापत्यागनी प्रेरणा
प्राणी सब चेतो, बात लो ए तो,
दिल विषे उतार;
तुम आतम तारी, सुख करनारी,
बात हमारी दिल विषे उतार.
पाप न करना, दु:खसे डरना,
हरना विषय कषाय;
परनारीको मात समजकर,
उससे लो दिल हटाय रे.
राग : नवो वेष रचे
भाव : जीवननी अनाथता नो परिचय ने श्रेणीक ने अनाथी मुनिनो सद्बोध
बंभसारे वनमां भमतां,
ऋषी दीठो रयवाडी रमतां;
रुप देखीने मने रीझयो,
भारे करमी पण भदज्यो.
राग : एशके सामान सब एक दिन यहां रह जायेंगे
भाव : दुन्यवी चीजनी नश्वरता, आवता जन्मनी चिंता
मोहनो त्याग ने धर्मनो राग
मोह से तेरा कमाया, धन यहां रह जायगा;
प्रेमसे अति पुष्ट कीया, तन जलाया जायगा.
प्रभुभजनकी भावना बीन, परलोकमें क्या पायेगा
कुच्छ कमाइ यहां न कीनी, खाली हाथे जायेगा.
(राग : ओली चंदनबाळाने बारणे)
भाव : चंदनबाळा नी प्रभुवीर प्रत्येनी शुभ भावना
बतारा मुखडा उपर जाउं वारी रे,
वीर मारां मन मान्या, तारा दर्शननी बलिहारी रे वीर,
मुठी बाकुळा माटे आव्या रे; मने हेत धरी बोलाव्या रे.
राग : गझल
भाव : आत्मा एक सोनुं बाकी बधु माटी… माटे आत्मा दशानी शोधनो संदेश
बनी मिट्टीकी सब बाजी, उसीमें होत क्यों राजी
मिट्टी का है शरीर तेरा, मिट्टीका कपडा पहेरा;
मिट्टी का म्हेल रहा छाजी, उसीमें होत क्यों राजी.