संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
कीचड़ में न फँसें
तेरी हुं तेरी हुं कहुं री
तेरी हुं तेरी हुं कहुं री,
इन बातमें दगो तुं जाने
तो करवत काशी जाय ग्रहुं री.
पीछे नहीं…आगे देखिए
अतीत का महत्त्व है इससे इन्कार नहीं है| उसे यूँ ही भुलाकर नहीं रहा जा सकता… परन्तु कदम-कदम पर अतीत की दुहाई देना… उसी से चिपटे रहना स्वयं को खतरे में डालना है| अतीत की स्मृति भले ही रहे परन्तु दृष्टि तो भविष्य की ओर केन्द्रित रहनी चाहिए…| हम क्या थे इसकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण यह देखना है कि अब हमें क्या बनना है?
समय के साथ आगे चलना और देखना जरूरी है| पिछले समय से तो मात्र शिक्षा लेनी चाहिए… यदि मनुष्य का पीछे की ओर देखना जरूरी होता तो आँखें आगे की बजाय पीछे होती| कहा जाता है कि भूत के पैर पीछे की ओर उलटे होते हैं… अतः इस बात को याद रखकर आगे बढ़ना|
सत्य की आज्ञा
जो मेधावी सत्य की आज्ञा में उपस्थित रहता है, वह मृत्यु के प्रवाह को तैर जाता है
क्षमापना से लाभ
क्षमापना से प्रसन्नता के भाव उत्पन्न होते हैं
The Lord’s Kevala
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परलोक में
सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति
इस लोक में किये हुए सत्कर्म परलोक में सुखप्रद होते हैं
पूज्य शिष्य
जो इंगिताकार से स्वीकार करता है वह पूज्य बनता है
श्रीफल का महत्त्व
प्रिय जमाई आप रखना, मन को सदा गहरा भरा