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कषाय-निग्रह

कषाय निग्रह

चत्तारि एए कसिणा कसाया
आत्मा को मलिन बनाने वाला तत्त्व कषाय है| क्रोध, मान, माया और लोभ ऐसे विकार हैं जो हमारी आत्मा को विकलांग बना रहे हैं| Continue reading “कषाय-निग्रह” »

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न भाषा न पांडित्य

न भाषा न पांडित्य

न चित्ता तायए भासा
कुओ विज्जाणुसासणं

विचित्र (लच्छेदार) भाषाएँ भी (दुराचारी की दुर्गति से) रक्षा नहीं कर सकतीं, फिर विद्यानुशासन (पाण्डित्य) की तो बात ही क्या?

भाषाज्ञान और विद्यानुशासन में बहुत अन्तर है| एक आदमी एक ही भाषा जानता हो; फिर भी वह विद्यानुशासित अर्थात् पण्डित हो सकता है; परन्तु कोई अन्य आदमी अनेक भाषाओं का ज्ञाता होकर भी मूर्ख हो सकता है| भाषाओं की जानकारी से ज्ञान नहीं बढ़ता| Continue reading “न भाषा न पांडित्य” »

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पुनिया श्रावक

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Quote #7

Miracles only happen if you believe in Miracles.
Unknown
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श्री हीरसूरि गुरुराय

Listen to श्री हीरसूरि गुरुराय

राग : धनाश्री
भाव : जगद्गुरु हीर सूरिजी म. सा. नुं जीवन वृत्तांत

श्री हीरसूरि गुरुराय,
हमारा हीरसूरि गुरुराय
प्रणमुं प्रभावक पाय,
हमारा हीरसूरि गुरुराय

…हमारा.१

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झुँझलायें नहीं

झुँझलायें नहीं

थोवं लद्धुं न खिंसए

थोड़ा मिलने पर झुँझलाएँ नहीं

यदि पूछा जाये कि ‘कुछ न मिलना’ अच्छा है या ‘कुछ मिलना’ तो यही उत्तर मिलेगा कि कुछ मिलना अच्छा है; परन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो टुकड़ों में या खण्डशः कोई वस्तु लेना पसन्द नहीं करते| वे पूर्ण वस्तु पाना चाहते हैं; इसलिए अपूर्ण वस्तु की प्राप्ति पर अप्रसन्न होते हैं| Continue reading “झुँझलायें नहीं” »

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Stop Meat Export

Sign & send Petition to stop meat exporting
Click to download petition – http://ge.tt/1f4Skkk

HB Rajya Sabha meat

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क्रोध न करें

क्रोध न करें

वुच्चमाणो न संजले

साधक को कोई यदि दुर्वचन कहे; तो भी वह उस पर क्रोध न करे

मनुष्य से जाने-अनजाने भूलें होती ही रहती हैं| अपनी भूलें स्वयं अपने को मालूम नहीं होतीं; इसीलिए “गुरुदेव” की जीवन में आवश्यकता होती है| वे दयावश हमें सुधारने के लिए हमारी भूलें बताते हैं| यदि हम उनके निर्देश के अनुसार विनयपूर्वक एक-एक भूल को सुधारते रहें; तो क्रमशः हमारा जीवन शुद्ध से शुद्धतर होता चला जाये| Continue reading “क्रोध न करें” »

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सम्यग्दर्शी

सम्यग्दर्शी

सम्मत्तदंसी न करेइ पावं

सम्यग्दर्शी पाप नहीं करता

जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा और मोक्ष – ये नौ ‘तत्त्व’ हैं| इनका स्वरूप अर्थ है| तत्त्व और अर्थ पर श्रद्धा रखना ही सम्यग्दर्शन है; क्यों कि जो साधक तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप को समझ लेता है, उसका उनके प्रति विश्‍वास हो ही जाता है| Continue reading “सम्यग्दर्शी” »

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परिवार की दृष्टि से न गिरो

परिवार की दृष्टि से न गिरो
कई बेसमझ अज्ञान महिलाएँ अपने भर्तार और घर की आय-व्यय का विचार न कर, वे विशेष वस्त्रालंकार श्रृंगार की वस्तुओं के लिये मरती हैं, कलह कर बैठती हैं| इसी मनमुटाव के कारण वे शनै: शनै: अपने परिवार और समाज की दृष्टि से गिर जाती हैं| Continue reading “परिवार की दृष्टि से न गिरो” »

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