महान चरित्र का निर्माण महान और उज्जवल विचारों से होता है
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१) भयंकर गर्मी की ऋतु में प्यास लगने पर भी रात्रि में पानी नहीं पीते|
२) वे काष्ट, लकड़ी, मिट्टी के पात्र ही उपयोग में लेते हैं| स्टील या अन्य धातु के बर्तन काम में नहीं लेते|
३) वे चार महीने तक, वर्षावास में एक स्थान पर स्थिर रहते हैं और शेष समय जिनाज्ञा अनुसार परिभ्रमण करते हैं| Continue reading “जैन साधु के विशिष्ट नियम” »
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जैसे पर्युषण के पॉंच कर्तव्यों का पालन करना है, ठीक उसी तरह सालभर के ग्यारह कर्तव्य का भी यथाशक्ति पालन अवश्य करना चाहिए|
सालभर में (१) संघपूजा (२) साधर्मिक भक्ति (३) यात्रात्रिक (४) स्नात्रपूजा (५) देवद्रव्यवृद्धि (६) महापूजा (७) धर्मजागरण (८) श्रुतपूजा (९) उद्यापन (१०) तीर्थप्रभावना और (११) प्रायश्चित्त….. ऐसे ग्यारह कर्तव्यों का पालन करना चाहिए| Continue reading “संघपूजा – साल का पहला कर्तव्य” »
साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है
जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये
विद्या और आचरण से ही मोक्ष बताया गया है
इसके लिए हम इतने पुण्यशाली बनें कि जो मेरे पास है वह मैं दूसरों को उदारता से दूँ| सृष्टि का एक नियम है जो दिया जाता है वही लौटता है जो हम दे सकते हैं उसे ईानदारी से देते रहना चाहिए|
जीवन में जिसने बॉंटा उसी ने पाया और जिसने संभाला उसी ने गँवाया अतः जब देना ही है तो शत्रु हो या मित्र सभी को समान रूप से दो| कितना भी दे दोगे तो भी खजाने में कुछ कमी नहीं आएगी|
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श्री नेमिनाथ जिन स्तवन
राग : श्याम तेरी बंसी…
शामळीयो त्यागीने हुं तो रागी,
संयम शुं रढ मने लागीरे लागी हो व्हाला..
ओ.. व्हाला रे मारा नेम नगीना निरागी,
व्हाला रे मारा सुंदर श्याम सौभागी
संयम लीये हुआ रे वडभागी.