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बन्धनमुक्त नहीं हो सकता

बन्धनमुक्त नहीं हो सकता

न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए

गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|

परतन्त्रता बन्धन है, स्वतन्त्रता मुक्ति| सुख स्वतन्त्रता में ही रहता है, परतन्त्रता में नहीं| कहावत है कि पराधीन व्यक्ति स्वप्न में भी सुखी नहीं हो सकता| Continue reading “बन्धनमुक्त नहीं हो सकता” »

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पूछ कर लीजिये

पूछ कर लीजिये

अणुविय गेण्हियव्वं

अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये

बिना पूछे किसी की कोई वस्तु उठा लेना और उसका उपयोग कर लेना चोरी का ही एक प्रकार है| कुछ लोग विनोद के लिए मित्र की वस्तु छिपा देते हैं और जब वह उसे परेशान होकर ढूँढने लगता है, तब हँसते हैं और वस्तु लौटा देते हैं| Continue reading “पूछ कर लीजिये” »

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निगोद को पहचानें

निगोद को पहचानें
(चार्तुास) वर्षा ऋतु में घर के कम्पाऊंड में, पुरानी दीवारों पर अथवा मकान की छत (अगासी) पर हरी, काली, कत्थई आदि रंगों की काई (सेवाल-लील) जम जाती है| उसी को निगोद कहते हैं| Continue reading “निगोद को पहचानें” »

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Motivational Wallpaper #4

महान चरित्र का निर्माण महान और उज्जवल विचारों से होता है

Standard Screen Widescreen Mobile
800×600 1280×720 iPad-Vertical
1024×768 1280×800 iPad-Horizontal
1400×1050 1440×900
1600×1200 1920×1080  
  1920×1200  
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जैन साधु के विशिष्ट नियम

जैन साधु के विशिष्ट नियम

१) भयंकर गर्मी की ऋतु में प्यास लगने पर भी रात्रि में पानी नहीं पीते|

२) वे काष्ट, लकड़ी, मिट्टी के पात्र ही उपयोग में लेते हैं| स्टील या अन्य धातु के बर्तन काम में नहीं लेते|

३) वे चार महीने तक, वर्षावास में एक स्थान पर स्थिर रहते हैं और शेष समय जिनाज्ञा अनुसार परिभ्रमण करते हैं| Continue reading “जैन साधु के विशिष्ट नियम” »

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Serve your parents

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संघपूजा – साल का पहला कर्तव्य

संघपूजा   साल का पहला कर्तव्य
जैसे पर्युषण के पॉंच कर्तव्यों का पालन करना है, ठीक उसी तरह सालभर के ग्यारह कर्तव्य का भी यथाशक्ति पालन अवश्य करना चाहिए|

पइवरिसं संघच्चण साहम्मिअभत्ति
तह य जत्ततिगं|
जिणगिहण्हवणं जिणधणवुड्ढि
महपूअ (धम्म) जागरिआ॥
सुअपूआ उज्जवणं तहेव तित्थपभावणा सोही॥

सालभर में (१) संघपूजा (२) साधर्मिक भक्ति (३) यात्रात्रिक (४) स्नात्रपूजा (५) देवद्रव्यवृद्धि (६) महापूजा (७) धर्मजागरण (८) श्रुतपूजा (९) उद्यापन (१०) तीर्थप्रभावना और (११) प्रायश्चित्त….. ऐसे ग्यारह कर्तव्यों का पालन करना चाहिए| Continue reading “संघपूजा – साल का पहला कर्तव्य” »

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मार्ग में घर

मार्ग में घर

संसयं खलु सो कुणइ
जो मग्गे कुणई घरं

साधना में संशय वही करता है, जो मार्ग में घर करना (ठहरना) चाहता है

मोक्ष हमारा अन्तिम लक्ष्य है और सदाचार सत्क्रिया वहॉं तक पहुँचने का मार्ग| Continue reading “मार्ग में घर” »

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गुरु विनय

गुरु विनय

जस्संतिए धम्मपयाइं सिक्खे,
तस्संतिए वेणइयं पउंजे

जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये

पद का अर्थ है – शब्द | धर्मपद का अर्थ है – ऐसे शब्द, जिनसे धर्म की शिक्षा मिलती हो| ऐसे शब्द धर्मशास्त्रों में पाये जाते हैं, इसलिए धर्मशास्त्रों की व्याख्या करने वाला धर्मगुरु है| Continue reading “गुरु विनय” »

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विद्या और आचरण

विद्या और आचरण

आहसु विज्जाचरणं पमोक्खं

विद्या और आचरण से ही मोक्ष बताया गया है

जिस प्रकार चलने के लिए चक्षु और चरण – दोनों आवश्यक हैं, उसी प्रकार मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी ज्ञान और क्रिया दोनों आवश्यक हैं| Continue reading “विद्या और आचरण” »

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