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गुरुदेवश्री का आश्‍वासन

गुरुदेवश्री का आश्‍वासन
अरे पुण्यशाली मानव! तू वास्तव में धन्यवाद का पात्र है| पाप हो जाना, कोई आश्‍चर्य नहीं है| मोहनीय कर्म के उदय से किसने कौन-से पाप नहीं किये? क्या मोह ने तीर्थंकर की आत्मा को भी छोड़ा है? क्या उन्होंने अपने पूर्व जीवन में भयंकर पाप नहीं किये? क्या उन पापों से उन्हें सातवी नरक तक नहीं जाना पड़ा? परंतु जीवन की काली-श्याम किताब को धोकर तुझे उज्जवल बनने का मनोरथ हुआ हैं| अतः तू धन्यवाद का पात्र है| तू तो काली किताब का एक-एक पन्ना खोलकर कालिमा को धो रहा है| अतः तू विशेष रूप से धन्यवाद का पात्र है| बालक जैसी सरलता से एक एक पाप निष्कपट भाव से प्रगट कर दे| अरे! आत्मा पर से झिड़क दे इन पापों को| Continue reading “गुरुदेवश्री का आश्‍वासन” »

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दर्शनावरणीय कर्म

दर्शनावरणीय कर्म
आँखों से देखने की शक्ति कम करता हैं,
कानों से सुनने की शक्ति कम करता हैं, Continue reading “दर्शनावरणीय कर्म” »

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अनुभव ! हम तो रावरी दासी

Listen to अनुभव ! हम तो रावरी दासी

अनुभव ! हम तो रावरी दासी,
आइ कहातें माया ममता,जानुं न कहां की वासी?

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प्रमाद मत कर

प्रमाद मत कर

समयं गोयम ! मा पमायए

हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर

गौतमस्वामी को, जो महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य थे – प्रधान गणधर थे, यह प्रेरणा दी गई थी कि आत्मकल्याण के मार्ग में चलते हुए क्षण भर के लिए भी तू प्रमाद मत कर| Continue reading “प्रमाद मत कर” »

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बीच में न बोलें

बीच में न बोलें

राइणियस्स भासमाणस्स वा
वियागरेमाणस्स वा नो अन्तरा भासं भासिज्ज

अपने से बड़े गुरुजन (रत्नाधिक) जब बोलते हों – व्याख्यान करते हों, तब उनके बीच में नहीं बोलना चाहिये

सद्गुण ही वास्तव में रत्न हैं, चमकीले पत्थर नहीं| जो व्यक्ति अपने से अधिक गुणवान है, उसके लिए रत्नाधिक शब्द का प्रयोग शास्त्रों में आता है| रत्नाधिक गुरुजन जब बोल रहे हों, चर्चा कर रहे हों अथवा व्याख्यान कर रहे हों, तब विनीत शिष्य का कर्त्तव्य है कि वह उनके बीच-बीच में न बोले| Continue reading “बीच में न बोलें” »

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Ticket, Tax or Talent…Stealing anything is bad

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मित्रों का नाशक

मित्रों का नाशक

माया मित्ताणि नासेइ

माया मित्रता को नष्ट करती है

माया शब्द का अर्थ यहॉं कपट या छल है| जिस प्रकार क्रोध प्रीति का और मान विनय का नाशक है, उसी प्रकार छल भी मित्रों का नाशक है| Continue reading “मित्रों का नाशक” »

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Motivational Wallpaper #17

श्वेतांबर हो या दिगंबर हो, बुद्ध हो या अन्य कोई मतवादी हो,
मगर…जो समभाव से भावित आत्मा होगी, वह मोक्ष प्राप्त करेगी| उसमे कोई शंका नहीं

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पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली

पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली
वसंतपुर नगर में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण युवक रहता था| उसने अपनी पत्नी के साथ चारित्र लिया| परन्तु परस्पर मोह नहीं टूटा| Continue reading “पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली” »

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अकिंचनता का अनुभव

अकिंचनता का अनुभव

तण्हा हया जस्स न होइ लोहो,
लोहो हओ जस्स न किंचणाइ

जिसमें लोभ नहीं होता, उसकी तृष्णा नष्ट हो जाती है और जो अकिंचन है, उसका लोभ नष्ट हो जाता है

‘किंचन’ का अर्थ है – कुछ| जो समझता है कि इस दुनिया में अपना कुछ नहीं हैं, जो सोचता है कि जन्म लेते समय हम अपने साथ कोई वस्तु नहीं लाये थे और मरते समय भी अपने साथ कुछ आने वाला नहीं है – सारा धन, खेत, मकान आदि यहीं छूट जाने वाले हैं – जो जानता है कि आत्मा के अतिरिक्त समस्त वस्तुएँ जड़ हैं – क्षणभंगुर हैं, वही ‘अकिंचन’ है| Continue reading “अकिंचनता का अनुभव” »

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