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चंपा

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विनय में स्थिर करें

विनय में स्थिर करें

विणए ठविज्ज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो

आत्महितैषी साधक अपने को विनय में स्थिर करे

किसी बैलगाड़ी या तॉंगे में बैठने वाला व्यक्ति स्थिर रहने का चाहे कितना भी प्रयास क्यों न करे, उसका बदन हिलता ही रहेगा| इसके विपरीत जमीन पर अथवा किसी शिला पर बैठने वाले व्यक्ति पायेंगे; कि उनका शरीर स्थिर है| शरीर की अस्थिरता या स्थिरता उसके आधार पर अवलम्बित है| Continue reading “विनय में स्थिर करें” »

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जीव विचार – गाथा 1

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आप स्वयं अपने मित्र है|


पुरिसा ! तुममेव तुमं मित्तं,
किं बहिया मित्तमिच्छसि

हे पुरुष ! तू स्वयं ही अपना मित्र है| अन्य बाहर के मित्रों की चाह क्यों रखता है ?

कहते हैं, ईश्‍वर भी उसीकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता खुद करता है| इसका आशय यही है कि दूसरों की सहायता की आशा न रखते हुए हमें स्वयं ही अपने कर्त्तव्य का पालन करते रहना चाहिये| Continue reading “आप स्वयं अपने मित्र है|” »

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क्रोध – एक अग्नि

क्रोध   एक अग्नि
एकबार आये हुए क्रोध में कितने सालों के तप और संयम को भस्मीभूत करने की ताकात है ? यदि कोई ऐसा प्रश्न करें, तो जवाब यह है कि- तप और संयम का उत्कृष्ट काल है देशोन पूर्व क्रोड वर्ष| इतने दीर्घ कालमें तप और संयम की जो साधना कर सकते हैं, उस साधना को भस्मीभूत करने की ताकत एकबार के आये हुए क्रोध में है| Continue reading “क्रोध – एक अग्नि” »

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रात्रिभोजन न करने के वैज्ञानिक कारण


रात में भोजन, पानी आदि ग्रहण करना जैन धर्म में निषेध हैं| इस निषेध के कई कारण हैं| कीटाणु और रोगाणु जिनको नग्न आंखों से देखना असंभव हैं, वे सूरज की रौशनी में गायब हो जाते हैं, वास्तव में नष्ट नहीं होते; वे छायादार स्थानों में शरण लेते हैं और सूर्यास्त के बाद; वे वातावरण में प्रवेश कर उसे व्याप्त करते हैं और फिर हमारे भोजन में मिल जाते हैं| इस तरह का भोजन उपभोग करने से कीटाणुओं और जीवाणुओ की हत्या होती हैं और बारी में हमारे बीमार स्वास्थ्य का कारण बनते हैं|
Continue reading “रात्रिभोजन न करने के वैज्ञानिक कारण” »

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दूसरा और तीसरा अवतार

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मनुष्यभव

मनुष्यभव

जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययन्ति मणुस्सयं

सांसारिक जीव क्रमशः शुद्ध होते हुए मनुष्यभव पाते हैं

जीव शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं| ऐसी योनियों की संख्या शास्त्रों में चौरासी लाख बताई गयी है| मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ मानी गई है; क्योंकि यहीं से सिद्धपद की प्राप्ति हो सकती है – मोक्ष की साधना हो सकती है| Continue reading “मनुष्यभव” »

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उपचार से भली सावधानी

उपचार से भली सावधानी
जीवों की उत्पत्ति होने के बाद उन जीवों की रक्षा करना बहुत मुश्किल हो जाता है| इसलिए घर में जीवों की उत्पत्ति ही न हो इस बात की सावधानी रखना उत्तम कार्य है|

इतनी सावधानी अवश्य रखिए :-

1) घर को सम्पूर्णतया स्वच्छ रखिए – गंदगी से जीवोत्पत्ति विशेष होती है|

2) पानी का उपयोग कम से कम कीजिए, गीलेपन से अधिक मात्रा में जीव पैदा होते हैं|

3) खाद्य पदार्थ जमीन पर न गिरें, अन्न के आकर्षण से अनेक जीव दौडे चले आते हैं| Continue reading “उपचार से भली सावधानी” »

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फफूंदी/फूलन को पहचानो

फफूंदी/फूलन को पहचानो
बासी खाद्य पदार्थ आदि पर सफेद रंग की फुग दिखाई देती है| यह खास करके बारिश में विशेष होती है| मिठाई, खाखरा, पापड, वडी, अन्य खाद्य पदार्थ, दवाई की गोलियॉं, साबुन पर, चमड़े के पाकिट-पट्टे पर, पुस्तक के पुठ्ठे पर तथा अन्य वस्तु पर नमी के कारण रातोरात सफेद फुग जम जाती है| Continue reading “फफूंदी/फूलन को पहचानो” »

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