इस सूक्ति में यथार्थ वचन का स्वरूप समझाया गया है| गुरु के सन्मुख विनयभाव का सूचन करते हुए आपने जो काम किया हुआ है, वह ‘कृत’ है और जो काम नहीं किया हुआ है, वह अकृत है| जो कृत है उसे कृत कहा जाये और जो अकृत है, उसे अकृत| Continue reading “कृत – अकृत” »
जो मनुष्य स्वाद का गुलाम बन जाता है, उसे भोजन की मात्रा का ज्ञान नहीं रहता| वह अपने पेट पर दया नहीं करता और ठूँस-ठूँस कर खाता है| प्रकृति ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल क्षमा नहीं करती| उसमें अजीर्ण पैदा कर देती है, जो समस्त बीमारियों का बीज है| Continue reading “खाने-पीने की मात्रा” »