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भवतृष्णा का त्याग

भवतृष्णा का त्याग

भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया

संसार की तृष्णा भयंकर फल देनेवाली एक भयंकर लता है

भवतण्हा तृष्णा अर्थात् संसार के प्रति आसक्ति एक लता है – ऐसी भयंकर लता, जिसमें भयंकर फल उत्प होते हैं| Continue reading “भवतृष्णा का त्याग” »

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कृत – अकृत

कृत   अकृत

कडं कडेत्ति भासेज्जा, अकडं नो कडेत्ति य

किये हुए को कृत और न किये हुए को अकृत कहना चाहिये

इस सूक्ति में यथार्थ वचन का स्वरूप समझाया गया है| गुरु के सन्मुख विनयभाव का सूचन करते हुए आपने जो काम किया हुआ है, वह ‘कृत’ है और जो काम नहीं किया हुआ है, वह अकृत है| जो कृत है उसे कृत कहा जाये और जो अकृत है, उसे अकृत| Continue reading “कृत – अकृत” »

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खाने-पीने की मात्रा

खाने पीने की मात्रा

माइ असणपाणस्स

खाने-पीने की मात्रा के ज्ञाता बनो

जो मनुष्य स्वाद का गुलाम बन जाता है, उसे भोजन की मात्रा का ज्ञान नहीं रहता| वह अपने पेट पर दया नहीं करता और ठूँस-ठूँस कर खाता है| प्रकृति ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल क्षमा नहीं करती| उसमें अजीर्ण पैदा कर देती है, जो समस्त बीमारियों का बीज है| Continue reading “खाने-पीने की मात्रा” »

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