अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ
आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है
आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है
एक ही झपाटे में जैसे बाज बटेर को मार डालता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है
सूर्य के उदय होने पर भी आँख से ही देखा जा सकता है
यथावसर संचित धन को तो अन्य व्यक्ति उड़ा लेते हैं और परिग्रही को अपने पापकर्मों का दुष्फल स्वयं भोगना पड़ता है
साधक कामी बनकर कामभोगों की कामना न करे| उपलब्ध को भी अनुपलब्ध समझे| प्राप्त भोगों पर भी उपेक्षा करे|