जं जारिसं पुव्वमकासि कम्मं,
तमेव आगच्छति संपराए
तमेव आगच्छति संपराए
पहले जो जैसा कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है
पहले जो जैसा कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है
अज्ञ अभिमान करते हैं
चढ़ाई के मार्ग में बूढे बैलों की तरह साधनामार्ग की कठिनाई में अज्ञ लोग खि होते हैं
सुव्रती व्यक्ति कम खाये, कम पीये और कम बोले
असंवृत मनुष्य मोहित हो जाते हैं
समझो! क्यों नहीं समझते मरने पर संबोध निश्चित रूप से दुर्लभ है
साधक को कोई यदि दुर्वचन कहे; तो भी वह उस पर क्रोध न करे
मुनियों का हृदय शरद्कालीन नदी के जल की तरह निर्मल होता है| वे पक्षी की तरह बन्धनों से विप्रमुक्त और पृथ्वी की तरह समस्त सुख-दुःखों को समभाव से सहन करने वाले होते हैं
तू, तुम जैसे अमनोहर शब्द कभी नहीं बोलें