चउहिं ठाणेहिं सन्ते गुणे नासेज्जा कोहेणं,
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं
मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह
मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह
मनसंयम, वचनसंयम, शरीरसंयम और उपकरणसंयम – ये संयम के चार प्रकार हैं
इस लोक में किये हुए सत्कर्म इस लोक में सुखप्रद होते हैं
इस लोक में किये हुए सत्कर्म परलोक में सुखप्रद होते हैं
मुखरता सत्यवचन का विघाता करती है
श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैं – दर्पण के समान (स्वच्छ हृदय वाले), पताका के समान (चञ्चल हृदय वाले), स्थाणु के समान (दुराग्रही) और तीक्ष्ण कण्टक के समान (कटुभाषी)
धर्म के दो रूप हैं – श्रुतधर्म (तत्त्वज्ञान) और चारित्रधर्म (नैतिकता)
भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है
पुत्र चार प्रकार के होते हैं – अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलांगार