अहिंसा तसथावरसव्वभूयखेमंकरी
अहिंसा त्रस एवं स्थावर समस्त भूतों (प्राणियों) का कल्याण करनेवाली है
अहिंसा त्रस एवं स्थावर समस्त भूतों (प्राणियों) का कल्याण करनेवाली है
सत्य, हित, मित और ग्राह्य वचन बोलें
इन्द्रों सहित देव भी (विषयों से) न कभी तृप्त होते हैं, न सन्तुष्ट
कुछ लोग प्रयोजन से हिंसा करते हैं और कुछ लोग बिना प्रयोजन ही
साधक को कमलपत्र की तरह निर्लेप और आकाश की तरह निरवलम्ब रहना चाहिये
सत्य ही भगवान है
अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये
भगवती अहिंसा भीतों (डरे हुओं) के लिए शरण के समान है
डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं
क्रुद्धा लुब्ध और मुग्ध हिंसा करते हैं