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वाणी का आदर्श

वाणी का आदर्श

सच्चं च हियं च मियं च गाहणं च

सत्य, हित, मित और ग्राह्य वचन बोलें

जो मनुष्य गूँगे नहीं है, उन सबको व्यवहार के लिए, दूसरों को अपने मन की बात समझाने के लिए, दूसरों के मन की बात जानने के लिए कुछ-न-कुछ प्रतिदिन बोलना ही पड़ता है| Continue reading “वाणी का आदर्श” »

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अनिदानता

अनिदानता

सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था

भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है

कार्य की शुद्धि के लिए निःस्वार्थता अत्यन्त आवश्यक है| स्वार्थ या फल की कामना ही कार्य को कलुषित करती है| फल तो मिलेगा ही; परन्तु हमें फल की आशा रख कर कार्य नहीं करना चाहिये| Continue reading “अनिदानता” »

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अन्धी पीसे, कुत्ता खाये

अन्धी पीसे, कुत्ता खाये

ए हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहिं किच्चति

यथावसर संचित धन को तो अन्य व्यक्ति उड़ा लेते हैं और परिग्रही को अपने पापकर्मों का दुष्फल स्वयं भोगना पड़ता है

व्यक्ति जब चोरी करता है अथवा किसी के धन का अपहरण करता है, तब उसके अन्तःकरण से एक आवाज़ निकलती है – ‘‘मत कर, ऐसा मत कर| बुरा काम है यह|’’ – परन्तु उस आवाज को अनसुनी करके स्वार्थ और प्रलोभन से प्रेरित हो कर व्यक्ति अपना कार्य कर ही डालता है| Continue reading “अन्धी पीसे, कुत्ता खाये” »

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मुक्त कौन है ?

मुक्त कौन है ?

विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो

जो जन (कामनाओं को) पार कर गये हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं

बन्धन ! कितना बुरा शब्द है यह ? कौन पसन्द करता है इसे ? कौन फँसना चाहता है इसमें ? कोई नहीं| Continue reading “मुक्त कौन है ?” »

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कामों की कामना

कामों की कामना

कामी कामे न कामए, लद्धे वा वि अलद्ध कण्हुइ

साधक कामी बनकर कामभोगों की कामना न करे| उपलब्ध को भी अनुपलब्ध समझे| प्राप्त भोगों पर भी उपेक्षा करे|

काम-भोगों का त्याग कर के जो प्रवृजित हो जाते हैं – दीक्षित हो जाते हैं, उन्हें फिर से कामुक बनकर कामभोगों की कामना कभी नहीं करनी चाहिये और न उनकी प्राप्ति के लिए कोई प्रयत्न ही करना चाहिये| Continue reading “कामों की कामना” »

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चार पुत्र

चार पुत्र

चत्तारि सुता-अतिजाते,
अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले

पुत्र चार प्रकार के होते हैं – अतिजात, अनुजात, अवजात और कुलांगार

कुछ पुत्र ऐसे होते हैं, जो गुणों में अपने पिताजी से भी आगे बढ़ जाते हैं, उन्हें ‘अतिजात सुत’ कहा जाता है| Continue reading “चार पुत्र” »

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न बद्ध, न मुक्त

न बद्ध, न मुक्त

कुसले पुण नो बद्धे, नो मुत्ते

कुशल पुरुष न बद्ध होता है, न मुक्त

कुशल पुरुष का वर्णन यहॉं आलंकारिक भाषा में किया गया है| जो बद्ध है, वह मुक्त नहीं हो सकता और जो मुक्त है, वह बद्ध नहीं हो सकता | व्यक्ति या तो बद्ध होगा या फिर मुक्त| वह दोनों एक साथ नहीं हो सकता| Continue reading “न बद्ध, न मुक्त” »

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खाने-पीने की मात्रा

खाने पीने की मात्रा

माइ असणपाणस्स

खाने-पीने की मात्रा के ज्ञाता बनो

जो मनुष्य स्वाद का गुलाम बन जाता है, उसे भोजन की मात्रा का ज्ञान नहीं रहता| वह अपने पेट पर दया नहीं करता और ठूँस-ठूँस कर खाता है| प्रकृति ऐसे व्यक्ति को बिल्कुल क्षमा नहीं करती| उसमें अजीर्ण पैदा कर देती है, जो समस्त बीमारियों का बीज है| Continue reading “खाने-पीने की मात्रा” »

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हँसते हुए न बोलें

हँसते हुए न बोलें

न हासमाणो वि गिरं वएज्जा

हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये

हँसते हुए बोलना अथवा बोलते हुए हँसना एक दुर्गुण है – कुटेव है – मूर्खता के अनेक लक्षणों में से एक लक्षण है| Continue reading “हँसते हुए न बोलें” »

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मोहग्रस्तता

मोहग्रस्तता

इत्थ मोहे पुणो पुणो सा,
नो हव्वाए नो पाराए

मोहग्रस्त व्यक्ति न इस पार रहते हैं, न उस पार

संसार क्षणभंगुर है| इसकी प्रत्येक वस्तु अस्थायी है- अस्थिर है; इसलिए विषयवासना की सामग्री भी ऐसी ही है; जिसके प्रति मुग्ध हो कर प्राणी इधर-उधर भटकते रहते हैं| Continue reading “मोहग्रस्तता” »

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