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भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 1

भक्तामर स्तोत्र   श्लोक 1

भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-
मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् |
सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा-
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् || 1 ||

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गुणनाश के कारण

गुणनाश के कारण

चउहिं ठाणेहिं सन्ते गुणे नासेज्जा कोहेणं,
पडिनिवेसेणं, अकयण्णुयाए, मिच्छत्ताभिनिवेसेणं

मनुष्य में विद्यमान गुण भी चार कारणों से नष्ट हो जाते हैं – क्रोध, ईर्ष्या, अकृतज्ञता और मिथ्या आग्रह

कुछ कारण ऐसे हैं, जिनसे प्राप्त गुणों का भी नाश हो जाता है| उनमें से पहला कारण है – क्रोध| इससे व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है – किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाता है| Continue reading “गुणनाश के कारण” »

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संयम और तप

संयम और तप

संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ

संयम और तप से आत्मा को भावित (पवित्र) करता हुआ साधक विहार करता है

राग-द्वेष, विषय-कषाय से कलुषित आत्मा किसी शरीर का आश्रय लेकर इस विशाल संसार में भटकती रहती है| उसका यह भवभ्रमण तब तक नहीं मिट सकता, जब तक उसका वह कालुष्य नहीं मिट जाता, जो उसे इस प्रकार भटकने को विवश करता रहता है| Continue reading “संयम और तप” »

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मृत्यु का आगमन

मृत्यु का आगमन

नत्थि कालस्स णागमो

मृत्यु किसी भी समय आ सकती है

मृत्यु! कितना भयंकर शब्द है यह? कौन इसे पाना चाहता है? कोई नहीं! घर में किसी की मृत्यु हो जाये तो सारा परिवार शोकसागर में निमग्न हो जाता है| Continue reading “मृत्यु का आगमन” »

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डरना नहीं चाहिये

डरना नहीं चाहिये

ण भाइयव्वं, भीतं खु भया अइंति लहुयं

डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं

डरता वही है, जो अपराधी है – पापी है – हत्यारा है| चोर और व्यभिचारी भी निरन्तर डरते रहते हैं कि कहीं कभी कोई उन्हें देख न ले – रंगे हाथों चोरी या व्यभिचार करते हुए पकड़ न ले| Continue reading “डरना नहीं चाहिये” »

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दुःख कोई बाँट नही सकता

दुःख कोई बाँट नही सकता

अस्स दुक्खं ओ न परियाइयति

कोई किसी दूसरे के दुःख को बाँट नहीं सकता

मनुष्य दुःखी इसलिए होता है कि वह प्रमादवश भूलें करता रहता है| दुःख भूलों का अनिवार्य परिणाम है| जो भूलें करेगा, वह इस परिणाम से नहीं बच सकेगा| Continue reading “दुःख कोई बाँट नही सकता” »

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परिहास न करें

परिहास न करें

न यावि पे परिहास कुज्जा

बुद्धिमान को कभी उपहास नहीं करना चाहिये

रोग की जड़ खॉंसी! झगड़े की जड़ हँसी!! यदि द्रौपदी ने हँसी उड़ाते हुए दुर्योधन के लिए ऐसा नहीं कहा होता कि अन्धे के बेटे भी आखिर अन्धे ही होते हैं; तो शायद इतना बड़ा महाभारत युद्ध न हुआ होता| Continue reading “परिहास न करें” »

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जीव विचार – गाथा 2

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उत्तम शरण

उत्तम शरण

धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं

धर्म द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और उत्तम शरण है

समुद्र में तैरते हुए जो व्यक्ति थक कर चूर हो जाता है, उसे द्वीप मिल जाये तो कितना सुख मिलेगा उससे ? धर्म भी संसार रूप सागर में तैरते हुए जीवों के लिए द्वीप के समान सुखदायक है| Continue reading “उत्तम शरण” »

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प्रियकर प्रियवादी

प्रियकर प्रियवादी

पियंकरे पियंवाइ, से सिक्खं लद्धुमरिहइ

प्रिय करनेवाला और प्रिय बोलनेवाला अपनी शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होता है

यदि कोई पशु या पक्षी प्यासा हो; तो उसे किसी जलाशय (सरिता, सरोवर, नाला आदि) के निकट जाना होगा| उसी प्रकार जिज्ञासु शिष्य को भी किसी गुरु के निकट जाना पड़ेगा; लेकिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है| Continue reading “प्रियकर प्रियवादी” »

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