1 0 Archive | दशवैकालिक सूत्र RSS feed for this section
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हँसते हुए न बोलें

हँसते हुए न बोलें

न हासमाणो वि गिरं वएज्जा

हँसते हुए नहीं बोलना चाहिये

हँसते हुए बोलना अथवा बोलते हुए हँसना एक दुर्गुण है – कुटेव है – मूर्खता के अनेक लक्षणों में से एक लक्षण है| Continue reading “हँसते हुए न बोलें” »

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पहले ज्ञान, फिर दया

पहले ज्ञान, फिर दया

पढमं नाणं तओ दया

पहले ज्ञान, फिर दया

दया धर्म की माता है तो ज्ञान धर्म का पिता है| ज्ञान और दया के समन्वय से ही धर्म की उत्पत्ति हो सकती है, अन्यथा नहीं| Continue reading “पहले ज्ञान, फिर दया” »

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मित्रों का नाशक

मित्रों का नाशक

माया मित्ताणि नासेइ

माया मित्रता को नष्ट करती है

माया शब्द का अर्थ यहॉं कपट या छल है| जिस प्रकार क्रोध प्रीति का और मान विनय का नाशक है, उसी प्रकार छल भी मित्रों का नाशक है| Continue reading “मित्रों का नाशक” »

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सदा अमूढ़

सदा अमूढ़

सम्मद्दिट्ठि सया अमूढे

जिसकी दृष्टि सम्यक् है, वह सदा अमूढ़ होता है

मिथ्याद्दष्टि मूढ़ होता है; उसकी मूढ़ता सत्संग से मिट सकती है; किंतु सम्यग्द्दष्टि अमूढ़ होता है, उसकी अमूढ़ता कुसंगति से भी नहीं मिटती| Continue reading “सदा अमूढ़” »

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विग्रहवर्धक बात न कहें

विग्रहवर्धक बात न कहें

न य विग्गहियं कहं कहिज्जा

विग्रह बढ़ानेवाली बात नहीं करनी चाहिये

बहुत-से लोगों की यह आदत होती है कि वे अधूरी बातें सुन-सुनाकर कलह उत्पन्न कर देते हैं| कभी-कभी अपनी ओर से नमक-मिर्च लगाकर वे बात का बतंगड बना देते हैं – तिल का ताड़ कर देते हैं और राई का पहाड़| Continue reading “विग्रहवर्धक बात न कहें” »

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बन्धनमुक्त नहीं हो सकता

बन्धनमुक्त नहीं हो सकता

न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए

गुरुजनों की अवहेलना करनेवाला कभी बन्धनमुक्त नहीं हो सकता|

परतन्त्रता बन्धन है, स्वतन्त्रता मुक्ति| सुख स्वतन्त्रता में ही रहता है, परतन्त्रता में नहीं| कहावत है कि पराधीन व्यक्ति स्वप्न में भी सुखी नहीं हो सकता| Continue reading “बन्धनमुक्त नहीं हो सकता” »

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गुरु विनय

गुरु विनय

जस्संतिए धम्मपयाइं सिक्खे,
तस्संतिए वेणइयं पउंजे

जिसके निकट रह कर धर्म के पद सीखे हों, उसके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये

पद का अर्थ है – शब्द | धर्मपद का अर्थ है – ऐसे शब्द, जिनसे धर्म की शिक्षा मिलती हो| ऐसे शब्द धर्मशास्त्रों में पाये जाते हैं, इसलिए धर्मशास्त्रों की व्याख्या करने वाला धर्मगुरु है| Continue reading “गुरु विनय” »

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क्रोध का नाश

क्रोध का नाश

उवसमेण हणे कोहं

क्रोध को शान्ति से नष्ट करें

क्रोध को क्रोध से नष्ट नहीं किया जा सकता| आग को आग से कैसे बुझाया जा सकता है ? आग को बुझाने के लिए जल चाहिये | इसी प्रकार क्रोध को नष्ट करने के लिए शान्ति चाहिये| Continue reading “क्रोध का नाश” »

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विषय-विरक्ति

विषय विरक्ति

वंतं इच्छसि आवेउं, सेयं ते मरणं भवे

वान्त पीना चाहते हो ? इससे तो तुम्हारा मर जाना अच्छा है

थूक को चाटना किसे अच्छा लगता है ? कै (वमन) में मुँह से बाहर निकली वस्तु को भला कौन पीना चाहेगा? कोई नहीं| थूक और वान्त से सभी घृणा करते हैं और इन्हें पुनः उदरसात् करने की अपेक्षा मर जाना अच्छा समझते हैं| Continue reading “विषय-विरक्ति” »

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दूर से ही त्याग

दूर से ही त्याग

कुसीलवड्ढणं ठाणं, दूरओ परिवज्जए

कुशील (दुराचार) बढ़ानेवाले कारणों का दूर से ही त्याग करना चाहिये

शील का अर्थ है – स्वभाव| जिसका स्वभाव अच्छा होता है – प्रशंसनीय होता है, वह सुशील कहलाता है| जो व्यक्ति चाहता है कि सब लोग उससे प्यार करें – उसकी प्रशंसा करें, वह सदा सुशील बनने का और बने रहने का प्रयास करेगा| Continue reading “दूर से ही त्याग” »

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