तं परिण्णाय मेहावी, इयाणिं णो,
जमहं पुव्वमकासो पमाएणं
जमहं पुव्वमकासो पमाएणं
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा
मेधावी साधक को आत्मपरिज्ञान के द्वारा यह निश्चय करना चाहिये कि मैंने पूर्वजीवन में प्रमादवश जो कुछ भूल की है, उसे अब कभी नहीं करूँगा
जैसे पुण्यवान को कहा जाता है, वैसे ही तुच्छ को और जैसे तुच्छ को कहा जाता है, वैसे ही पुण्यवान को
जो एक अपने को नमा लेता है; वह बहुतों को नमा लेता है
वही वीर प्रशंसनीय बनता है, जो बद्ध को प्रतिमुक्त करता है
आतंकदर्शी पाप नहीं करता
लाभ होने पर घमण्ड में फूलना नहीं चाहिये और लाभ न होने पर शोक नहीं करना चाहिये
सर्वथा काया को मोह छोड़ता हूँ – मेरी देह पर कोई परीषह जैसे है ही नहीं
सम्यग्दर्शी पाप नहीं करता
जो अभ्यन्तर को जानता है, वह बाह्य को जानता है और जो बाह्य को जानता है वह अभ्यन्तर को जानता है
कामभोगों में आसक्त रहनेवाले व्यक्ति कर्मों का बन्धन करते हैं