पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि
हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले
हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले
मायावी और प्रमादी फिर से गर्भ में आते हैं
बुद्धिमान साधक लार चाटने वाला न बने अर्थात् परित्यक्त भोगों की पुनः कामना न करे
हे बुद्धिमान साधक! अवशिष्ट आयु को देखते हुए समय को पहचान-अवसर का मूल्य समझ
जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्त्रोतसिका (शंका) छोड़कर उसका अनुपालन करना चाहिये
पापकर्म न स्वयं करना चाहिये और न दूसरों से कराना चाहिये
बाल (अज्ञानी या मूर्ख) की संगति नहीं करनी चाहिये
जो विचारपूर्वक बोलता है, वही निर्ग्रन्थ है
यहॉं मनुष्य विभिन्न रुचियों वाले हैं
अपने समान ही बाहर (दूसरों को) देख