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सच्चाई को जानिये

सच्चाई को जानिये

पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि

हे पुरुष! तू सत्य को ही अच्छी तरह जान ले

दुनिया में जानने योग्य बहुत-सी बातें हैं| भूगोल, खगोल, भूगर्भ, गणित, इतिहास, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, कोष, व्याकरण, छन्द, काव्य, अलंकार, रस, ललितकलाएँ, ज्योतिष, सामुद्रिक, शकुन, साहित्य विभभिन्न देशों की विभिन्न भाषाएँ, विविध लिपियॉं, संगीतशास्त्र, नीति, दर्शन, न्याय आदि सैकड़ों विषय हैं| Continue reading “सच्चाई को जानिये” »

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गर्भ में आते हैं

गर्भ में आते हैं

माई पमाई पुण एइ गब्भं

मायावी और प्रमादी फिर से गर्भ में आते हैं

गर्भ में आने का अर्थ है – जन्म धारण करना और जन्म धारण करने का अर्थ है – एक दिन सब छोड़ कर मर जाना अर्थात् जन्म-मरण के चक्कर में पड़े रहना| Continue reading “गर्भ में आते हैं” »

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थूक न चाटें

थूक न चाटें

से मइमं परिय मा य हु लालं पच्चासी

बुद्धिमान साधक लार चाटने वाला न बने अर्थात् परित्यक्त भोगों की पुनः कामना न करे

जब आँखें खोलकर साधक दुनिया में यह देखता है कि लोग भोग से रोग के शिकार बनते हैं – वैद्यों और डाक्टरों के द्वार खटखटाते हैं – उनके लम्बे-लम्बे बिल चुकाते हैं; फिर भी रोगों के चंगुल से वे अपनी पूरी तरह पिण्ड नहीं छुड़ा पाते, एक के बादे एक कोई-न-कोई रोग शरीर में उत्पन्न होता ही रहता है; Continue reading “थूक न चाटें” »

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समय को पहचानिये

समय को पहचानिये

अणभिक्कंतं च वयं संपेहाए,
खणं जाणाहि पंडिए

हे बुद्धिमान साधक! अवशिष्ट आयु को देखते हुए समय को पहचान-अवसर का मूल्य समझ

हीरा भी अमूल्य है और पत्थर भी; परन्तु दोनों की अमूल्यता में महान अन्तर है| हीरा इसलिए अमूल्य है कि उसका कोई मूल्य ही नहीं है| समय की अमूल्यता भी हीरे की तरह है| Continue reading “समय को पहचानिये” »

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श्रद्धा से टिके रहें

श्रद्धा से टिके रहें

जाए सद्धाए निक्खंते,
तमेव अणुपालेज्जा विजहित्ता विसोत्तियं

जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ विस्त्रोतसिका (शंका) छोड़कर उसका अनुपालन करना चाहिये

साधना के मार्ग में फूलों से अधिक तीक्ष्ण कण्टक होते हैं, इसलिए साधक को बीच-बीच में अनेक संकटों का सामना करना पड़ता है| उनसे व्याकुल हो कर कभी-कभी वह अपने मार्ग से भटक जाता है – बारम्बार मिलनेवाली असफलताओं से कभी-कभी वह निराश भी हो जाता है| Continue reading “श्रद्धा से टिके रहें” »

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पाप न करें, न करायें

पाप न करें, न करायें

पावकम्मं नेव कुज्जा न कारवेज्जा

पापकर्म न स्वयं करना चाहिये और न दूसरों से कराना चाहिये

पुण्य का फल सुख है और पाप का फल दुःख | सुख सब चाहते हैं, फिर भी पुण्य करने में आलसी बनते हैं और दुःख कोई नहीं चाहता, फिर भी सावधानी पूर्वक दुःख के कारणों का अर्थात् पापों का सेवन करते हैं| कैसी विचित्र बात है यह? Continue reading “पाप न करें, न करायें” »

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मूर्ख की संगति न करें

मूर्ख की संगति न करें

अलं बालस्स संगेणं

बाल (अज्ञानी या मूर्ख) की संगति नहीं करनी चाहिये

यह एक अनुभूत तथ्य है कि साथ रहनेवालों पर परस्पर एक-दूसरे का प्रभाव पड़ता है| यदि साथी व्यसनी होगा; तो हम भी व्यसनी बन जायेंगे – यदि वह बुद्धिमान होगा तो हमें भी बुद्धिमान बना देगा – यदि वह विद्वान होगा तो हमें भी विद्वान बनने के लिए प्रेरित करेगा| Continue reading “मूर्ख की संगति न करें” »

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विचारपूर्वक बोलें

विचारपूर्वक बोलें

अणुवीइभासी से निग्गंथे

जो विचारपूर्वक बोलता है, वही निर्ग्रन्थ है

बोली से या बातचीत से ही पता लगता है कि कौन मूर्ख है और कौन विद्वान| दोनों में अन्तर क्या है? Continue reading “विचारपूर्वक बोलें” »

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विचार वैभिन्य

विचार वैभिन्य

पुढो छंदा इह मानवा

यहॉं मनुष्य विभिन्न रुचियों वाले हैं

इस संसार में हम देखते हैं कि मनुष्यों का परस्पर स्वभाव भिन्न-भिन्न होता है – उनकी रुचियॉं भिन्न-भिन्न होती हैं – उनके विचार भिन्न-भिन्न होते हैं| यहॉं तक कि एक ही मनुष्य के विचार भी समान नहीं रहते-विभिन्न समयों में विभिन्न होते हैं| Continue reading “विचार वैभिन्य” »

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आत्मवत् देखो

आत्मवत् देखो

आयओ बहिया पास

अपने समान ही बाहर (दूसरों को) देख

ज्ञानियों ने पापों से – सब प्रकार के दुराचरणों से बचने का एक अत्यन्त सरल उपाय सुझाया है, जिसके द्वारा हम पुण्य-पाप का-अहिंसा-हिंसाका-धर्माधर्म का निर्णय भी कर सकते हैं और बुराइयों से बच भी सकते हैं| Continue reading “आत्मवत् देखो” »

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