राग : गुरु बिन कौन बतावे वाट वागेश्वरी
भाव : विषय लगन नी चाह ने मिटाववा माटे नु दर्दभर्यु ब्यान
विषयकी कैसे कटे मोरी चाह,
करती यह फनाह.
पांच ईन्द्रियो पोषे इसको,
मन हैं ईसका नाह.
…विषयकी.१
शब्द रूप रस गंध स्पर्शकी,
माया बडी है अगाह.
…विषयकी.२
छाइ अनादिकी यही मूरखता,
वो ही हृदयमें दाह.
…विषयकी.३
पिंडनिर्युतक्त देखत जब हुं,
विकट साधुका राह..
…विषयकी.४
नरक निगोदके दु:खसागरमें,
कर रहा अवगाह.
…विषयकी.५
चरण करण हीन मैं दु:ख पावुं,
मिलत नहि शिव लाह.
…विषयकी.६
आत्म कमलमें दर्श सुहाये,
लब्धि होगी वाह वाह.
…विषयकी.७
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
No comments yet.
Leave a comment