राग : गझल
भाव : आत्मा एक सोनुं बाकी बधु माटी… माटे आत्मा दशानी शोधनो संदेश
बनी मिट्टीकी सब बाजी, उसीमें होत क्यों राजी
मिट्टी का है शरीर तेरा, मिट्टीका कपडा पहेरा;
मिट्टी का म्हेल रहा छाजी, उसीमें होत क्यों राजी.
…बनी. १
घरेणा मिट्टी का तेरा, है मिट्टीका पलंग प्यारा;
तेरा मिट्टी का है वाजी, उसीमें होत क्यो राजी.
…बनी. २
जगतमें वस्तु है जो जो, मिट्टी में सब मिले वो वो;
इसीमें क्यों बना पाजी, उसीमें होत क्यो राजी.
…बनी. ३
दशा निज आत्मकी शोधो, जगत मायासे मन रोधो;
यही एक बात है ताजी, उसीमें होत क्यों राजी.
…बनी. ४
कहे लब्धि सदा सेवो, जिनाधिराज शुद्ध देवो;
बनो शिवसुख के भाजी, उसीमें होत क्यों राजी.
…बनी. ५
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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