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साहसी बालक

साहसी बालक

परोपकारः कर्त्तव्यः प्राणैरपि धनैरपि
कलकत्ता की एक सड़क पर घोड़ागाड़ी दौड़ी जा रही थी| इस घोड़ागाड़ी में एक स्त्री अपने बच्चे के पास बैठी हुई थी| अचानक घोड़ा बिदक गया| कोचवान छिटककर दूर जा गिरा| घोड़ागाड़ी में बैठी स्त्री सहायता के लिए चीख-पुकार मचाने लगी| Continue reading “साहसी बालक” »

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डिट्टा का भाग्य

डिट्टा का भाग्य
एक गॉंव में एक आदमी रहता था| उसे लोग डिट्टा कहकर बुलाते थे| वह कुछ भी पढ़ा लिखा नहीं था, इसलिए बेकार था| Continue reading “डिट्टा का भाग्य” »

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अनमोल शिक्षा

अनमोल शिक्षा

नो हीलए नो वि य खिंसएज्जा
जीवन का सच्चा पथ यही है कि जिस पर चलते हुए पथिक आलोक, अमृत और आनन्द को प्राप्त कर सकें…इस जीवन में जो हमें प्राप्त नहीं है उसके लिए आज तक हम रोते रहे हैं…शिकायतें करते रहे हैं| Continue reading “अनमोल शिक्षा” »

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पुष्प समान जीवन मिले

पुष्प समान जीवन मिले
गुरुजनों का प्रदेश… अर्थात गुर्जर देश… पिया के घर जाती हुई एक नयी नवेली दुल्हन ने… गरवी गुजरात के राष्ट्रसंत श्री रविशंकर महाराज से चरण स्पर्श कर आशिष मॉंगा…| Continue reading “पुष्प समान जीवन मिले” »

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आनंद की साधना

आनंद की साधना

आज्ञा तु निर्मलं चित्तं कर्त्तव्यं स्फटिकोपमम्
एक व्यक्ति ने एक अबोध शिशु को घास पर खेलते देखा| वह बहुत आनंदित था| Continue reading “आनंद की साधना” »

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समय का सदुपयोग

समय का सदुपयोग

कालेण काले विहरेज्जा
जो क्षण बीत गया है उसकी चिन्ता मत करो और जो समय हाथ में है उसका जागृति पूर्वक सदुपयोग कर लो| Continue reading “समय का सदुपयोग” »

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ज्ञान की रोशनी

ज्ञान की रोशनी

नमो नमो नाणदिवायरस्स
ज्ञान की रोशनी में मेरा जीवन-पथ आलोकित हो…ज्ञान को रोशनी से मार्ग के कॉंटें दृष्टिगोचर हो…मुझे अब भीतर जाना है| Continue reading “ज्ञान की रोशनी” »

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जीवन का निर्माण

जीवन का निर्माण
जन्म का प्रारम्भ तो सभी का एक जैसा होता है लेकिन अन्त एक जैसा नहीं होता| सुबह तो सभी की एक सी है पर शाम भिन्न-भिन्न है| Continue reading “जीवन का निर्माण” »

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अपरिग्रह

अपरिग्रह

मुच्छा परिग्गहो वुत्तो
किसी भी वस्तु के प्रति मूर्च्छा का भाव ही परिग्रह है| मूर्च्छा परिग्रह है| परिग्रह का अर्थ है संग्रह और अपरिग्रह का अर्थ है त्याग| किसी वस्तु का अनावश्यक संग्रह न करके उसका जन-कल्याण हेतु वितरण कर देना| परिग्रह मनुष्य को अहंकार एवं मोहरूपी अँधेरे के अथाह भंवर में डुबो देने वाला होता है| धन की परिग्रहवृत्ति काम, क्रोध, मान और लोभ की उद्भाविका है| Continue reading “अपरिग्रह” »

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सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है

सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है
अगर तुम्हारा पात्र भीतर से बिलकुल शुद्ध है, निर्मल है, निर्दोष है, तो जहर भी तुम्हारे पात्र में जाकर निर्मल और निर्दोष हो जाएगा| Continue reading “सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है” »

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